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HINDUISM

Mukesh Kumar Sharma

11/26/20241 min read

तत्वमसि

वह तुम ही हो

सामवेद का यह महावाक्य जो घोषणा करता है कि वह ब्रहम तुम ही हो, तत्वमसि , वह तुम ही हो। तत् त्वम् असि अर्थात वह तुम ही हो। सामवेद का यह महावाक्य आद्य शंकराचार्य के दर्शन के मौलिक कथनों में एक है। छांदोग्य उपनिषद में यह वाक्य कई बार आता है। चूंकि यह एक महावाक्य है अतः इसे कई बार कई संतों ने अपने विभिन्न शिष्यों से कहा है। तत्वमसि सत्य है और सत्य का उद्गम नहीं होता, सत्य सदा से है, जब कोई नहीं था तब भी सत्य था, और जब कोई नहीं रहेगा तब भी सत्य रहेगा।

चार वेदों में चार महावाक्य सम्मलित है, जिसमें सामवेद का महावाक्य तत्वमसि है। महावाक्य का अर्थ होता है, ऐसा वाक्य जिसे आधार बनाकर सम्पूर्ण जीवन जीया जा सकता है। वह अकेला ही पर्याप्त और पूर्ण सत्य है जीवन के लिए। तत्वमसि वाक्य आत्मा की ब्रह्म के साथ एकता को प्रकाशित करता है।

ब हम तत्वमसि महावाक्य के विषय में विवेचना करते हैं, क्या अर्थ है इसका? तत्वमसि वाक्य अद्वेत दर्शन से सम्बंधित है, इसका विस्तारित अर्थ देखें तो - समस्त ब्रहमाण्ड में जो व्याप्त है, जो अनन्त है, जो सब प्राणियों के शरीर में प्राण बनकर बह रहा है, जो सबका नियामक है, चंद्रमा, सूर्य आदि समस्त ग्रह जिसके अधीन हैै, वह जग का एकमेव अधिपति तू ही है, अर्थात तू ही ब्रहम है।

सामवेद के इस महावाक्य के अनुसार मनुष्य स्वयं के सच्चे स्वरूप से परिचित नहीं है, मानव की चेतना शरीर, बुद्धि, व्यक्तिगत मन तक ही सीमित रहती है। जबकि मनुष्य तो स्वयं इस ब्रहमाण्ड का एकमात्र नियंत्रक और विधायक है। जब इस संसार इस यूनिवर्स का जन्म नहीं हुआ था, तब नाम और रूप की सीमाओं से परे एक मात्र सत्य स्वरूप ब्रहम का ही अस्तित्व था, वह ब्रहम तू ही है।

इस शरीर और इसकी इन्द्रियों की सीमाएं है, मन और बुद्धि भी सीमित है, जब सामवेद का यह महावाक्य कहता है कि हे मनुष्य तू ही समस्त ब्रहमाण्ड का एकमात्र अधिपति है तो सामवेद मानव के वर्तमान स्वरूप को इंगित करके यह बात नहीं कह रहा। मानव के जीवित होने के लिए जो मूल कारण है, उसमें और परम ब्रहम में कोई भेद नहीं है, सामवेद के इस महावाक्य का उद्देश्य उस भेद बुद्धि को समाप्त करके मानव की चेतना के स्तर को अपने यर्थाथ स्वरूप से परिचित कराना है।

ये सत्य नहीं होगा कि कोई मानव अपने को शरीर समझता हुआ और अपनी तुच्छ ईच्छाओं के साथ, स्वयं को ईश्वर कहने या समझने की भूल करे? जब तत्वमसि की बात होती है तो शरीर को लक्ष्य रखकर बात नहीं होती है। जब मानव की चेतना व्याप्त हो जाती है और उसका व्यक्तिगत मन समष्टि के मन के साथ एक रूप हो जाता है, तो मानव को अनुभव हो जाता है कि वही ब्रहम है, इसका उद्घोष कई उपलब्ध संतोें ने पूर्व में भी किया है।

रामकृष्ण परमहंस के अंतिम दिनों में जब वे शारिरिक रूप से बहुत अधिक पीड़ा में थे, तब एक दिन स्वामी विवेकानंद ने उनसे प्रश्न किया कि है गुरूजी मुझे बताएं कि आप कौन हैं? तो रामकृष्ण परमहंस ने अपने स्वरूप के बारे में स्वामी विवेकानंद से दो शब्द कहे थे। उन शब्दों के बारे में वे लोग जानते होंगें जिन्होंनें स्वामी विवेकानंद के साहित्य का अध्ययन किया है। कई उदाहरण है, मानव इतिहास में जब मानव ने, महामानव के स्तर को छूकर अपने सर्वव्याप्क स्वरूप का उद्घोष किया गया।

यर्थाथ ज्ञान सभी को उपलब्ध होगा, किसी को इस जन्म में तो किसी को आने वाले जन्मों में , हर व्यक्ति यहाॅं अपने कर्मों और उनके परिणामों से निरंतर उन्नत हो रहा है। जाने अनजाने में सभी उसी मार्ग के पथिक है।

आपका मित्र मुकेश कुमार शर्मा   greateducation.in के लिए